मंगलवार, 16 सितंबर 2025

16 सितंबर 2025 : अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस

अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस
International Day for the Preservation of the Ozone Layer

आज का दिन : 16 सितंबर 2025


  • प्रतिवर्ष 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस मनाया जाता है।
  • 23 जनवरी 1995 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में प्रतिवर्ष 16 सितंबर को 'अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस' मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। तब से प्रतिवर्ष सम्पूर्ण विश्व में 16 सितंबर को 'अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस' मनाया जा रहा है। इसे विश्व ओजोन दिवस भी कहा जाता है।
  • ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों और रेडियो विकिरण को पृथ्वी पर आने से रोकती है।
  • बढ़ते औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप वायुमंडल में कुछ ऐसे रसायनों की मात्रा बढ़ गई है, जिनके दुष्प्रभाव से ओजोन परत को खतरा उत्पन्न हो गया है। इसी खतरे के प्रति सम्पूर्ण विश्व को जागरुक करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।
  • सन् 1985 में हुई वियना संधि (कन्वेंशन) को 2025 में 40 साल हो गए हैं। दुनिया के देशों ने ओजोन परत को सुरक्षित रखने के लिए इस संधि को अपनाया था।

ओजोन छिद्र

  • सितंबर 2006 तक अन्टार्कटिका के ऊपर ओजोन की परत में 40 प्रतिशत की कमी पाई गई थी, जिसे ओजोन छिद्र का नाम दिया गया था।
  • नेशनल ओशीएनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) पृथ्वी पर लगे उपकरणों और गुब्बारों के जरिए ओजोन परत में वार्षिक होने वाले छिद्र को मापता है।
  • अंटार्कटिका के ऊपर हर साल सितंबर मध्य में ओजोन परत में छिद्र बनता है। उसके बाद अक्टूबर तक उसका दायरा सिमटता जाता है।
  • वर्ष 2017 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और नेशनल ओशीएनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने संयुक्त रूप से जांच में पाया कि ओजोन परत को वर्ष 2017 में पिछले तीस वर्षों में सबसे कम नुकसान पहुंचा। वर्ष 2017 में ओजोन परत में छेद 1988 के बाद सबसे छोटा रहा है।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसके तहत ओजोन परत को संरक्षित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से उन पदार्थों को उत्सर्जन रोकना है जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं। यह संधि 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हुई। इसे 196 देशों द्वारा मान्यता दी गई है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन होने पर सन् 2050 तक ओजोन परत ठीक होने की उम्मीद है। 
  • भारत 19 जून, 1992 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक पक्षकार बना और तब से अब तक इसके तहत जितने भी लक्ष्य तय किए गए, वे सभी भारत ने सफलतापूर्वक पूरे किए हैं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले 96 रसायनों पर नियंत्रण लगाया गया है।
  • भारत को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत चार प्रमुख रसायनों क्लोरोफ्लोरा कार्बन, सीटीसी, हेलेन्स और हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन को इस्तेमाल से बाहर करना था। इसके तहत भारत ने सन् 2003 के प्रारंभ में हेलेन्स को इस्तेमाल से बाहर किया। इसके बाद 1 अगस्त, 2008 तक सीएफसी यानी क्लोरा फ्लोरा कार्बन का इस्तेमाल बंद किया। सीटीसी का इस्तेमाल 2009 में बंद कर दिया गया। अब हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन को इस्तेमाल से बाहर करने की प्रक्रिया जारी है।
  • विश्व समुदाय ने ओजोन के क्षरण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता जैसी चुनौतियों से पार पाने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए 'वैश्विक पर्यावरण सुविधा' (जीईएफ) की स्थापना की थी। यह परिवर्तनशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में ओजोन के क्षरण के लिए जिम्मेदार पदार्थों को इस्तेमाल से बाहर करने की परियोजनाओं और क्रियाकलापों को बढ़ावा देती है।
  • किगाली संशोधन : 15 अक्टूबर, 2016 को रवांडा के किगाली में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पक्षकारों की 28वीं बैठक में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन (एचएफसी) कटौती के लिए एक और संशोधन को स्वीकार किया गया, जिसे किगाली संशोधन के नाम से जाना जाता है। भारत ने अगस्त, 2021 में किगाली संशोधन को स्वीकार किया। भारत 2032 से 4 चरणों में एचएफसी के अपने चरण को 2032 में 10 प्रतिशत, 2037 में 20 प्रतिशत, 2042 में 30 प्रतिशत और 2047 में 80 प्रतिशत की संचयी कमी के साथ पूरा करेगा।

ये होती है ओजोन गैस और ओजोन परत

  • ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है। ओजोन परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है।
  • ओज़ोन परत (Ozone Layer) धरातल से 20-30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमण्डल के समताप मण्डल क्षेत्र में ओजोन गैस का एक झीना-सा आवरण है। ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है।
  • यदि सूर्य से आने वाली सभी पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंच जाएं तो सभी प्राणी रोग (कैंसर) से पीडि़त हो जाएं। परन्तु सूर्य विकिरण के साथ आने वाली पराबैंगनी किरणों का लगभग 99 प्रतिशत भाग ओजोन मण्डल द्वारा सोख लिया जाता है। जिससे पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी वनस्पति तीव्र ताप व विकिरण से सुरक्षित बचे हुए हैं। इसीलिए ओजोन मण्डल या ओजोन परत को सुरक्षा कवच कहते हैं।
  • ओजोन परत को क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफ.सी), क्लोरीन एवं नाइट्रस ऑक्साइड जैसे रसायनों से नुकसान पहुंच रहा है। ये ओजोन गैस को ऑक्सीजन में विघटित कर देते हैं, जिसकी वजह से ओजोन परत पतली हो जाती है और उसमें छिद्र हो जाता है। एक अध्ययन के अनुसार ओजोन परत में छिद्र का आकार यूरोपीय महाद्वीप के आकार के बराबर हो गया है।
  • ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाला यौगिक 'क्लोरा फ्लोरा कार्बन' (सीएफसी) क्लोरीन, फ्लोरीन तथा कार्बन का यौगिक है। यह रेफ्रिजेरेशन उद्योग में प्रमुख रूप से प्रयुक्त होता है।
  • *ओजोन परत संरक्षण दिवस-2025 का विषय/थीम*
    From science to global action

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