विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस
(World Day to Combat Desertification and Drought)
आज का दिन : 17 जून 2025
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विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस-2025 थीम |
- प्रतिवर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस मनाया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र की ओर से पहली बार 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस' 17 जून, 1995 को मनाया गया।
- यह दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य दुनिया में लगातार बढ़ रहे मरुस्थलीकरण व सूखे को रोकना है।
- वर्ष 2025 के विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस पर वैश्विक समारोह की मेजबानी कोलंबिया सरकार द्वारा की जा रही है। मुख्य कार्यक्रम कोलंबिया की राजधानी बोगोटा में किया रहा है।
रियो सम्मेलन में पड़ी थी इस दिवस को मनाने की नींव
- 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस' को मनाने की नींव ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरियो में 3 से 14 जून, 1992 तक हुए पृथ्वी सम्मेलन में रखी गई। इस पृथ्वी सम्मेलन को रियो समिट, रियो कॉन्फ्रेंस और अर्थ समिटि के नाम से भी जाना जाता है।
- रियो पृथ्वी सम्मेलन के 2 वर्ष बाद 19 दिसंबर, 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रतिवर्ष 17 जून को 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस' मनाने का प्रस्ताव पारित किया। इसी समय महासभा ने 'संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय/कन्वेंशन' (UNCCD) की स्थापना की, जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोडऩे वाला एकमात्र अंतरराष्ट्रीय समझौता है। भारत ने वर्ष 2019 से 2022 तक यूएनसीसीडी की अध्यक्षता की है।
- संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2010-2020 के दशक को 'मरुस्थल और मरुस्थलीकरण के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र दशक' (United Nations Decade for Deserts and the fight against Desertification) के रूप में मनाया था।
देश में 1952 में हुई थी काजरी की स्थापना
- देश में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की ओर से 1952 में केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) की स्थापना राजस्थान के जोधपुर में की गई। बढ़ते मरुस्थल एवं सूखा क्षेत्रों को रोकने के लिए काजरी की स्थापना की गई। शुरुआत में यह मरु वनीकरण केन्द्र के रूप में स्थापित हुआ, लेकिन बाद में इसका विस्तार करते हुए इसे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के रूप में 1959 में पूर्ण संस्थान का दर्जा दिया गया। दिसंबर, 2020 में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह में काजरी का क्षेत्रीय केंद्र शुरू हुआ। यानी अब काजरी के वैज्ञानिक रेतीले मरुस्थल के साथ ही शीत मरुस्थल में भी अनुसंधान करेंगे।
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